माघ / ऋतु-प्रिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
धन्य माघ,
अः बाधक सोदर
यमराजक छह प्रबल दूत तोँ,
शिशिर पिशाचिनि
शिशु हेमन्त केँ काँचे खैलक,
तेँ तोहर साम्राज्य
आइ चारू दिस पसरल
अपना माइक कोखिक उज्ज्वल
धरती पर सरिपहुँ सपूत तोँ
धन्य माघ, अः बाधक सोदर
यमराजक छह प्रबल दूत तोँ
ताहू मे ई पूरिबा पौलह
उमड़ल प्रलयक मेघ
घटा बनि चमकल बिजुरी रेखा
धन सम्पत्ति कहाँ के गनइछ
प्राणक करइछ लेखा
दुर्बल पापी गर्जन बुझलक
तोँ धरि भैरव गौलह
सरिपहुँ तोँ सन्तावन पौलह
माघ,
थिका सब दिनुक घाघ तोँ
जे मरहन्ना अगहन पौलक
ढन ढन तकर बखारी
जाड़ँ कपइछ कोंढ़, ताहि पर
ई पुरिबा फौदारी?
खन पुरिबा खन पछबा
कौखन धूआँ सन मुँह कैने
छारल बेस कुहेस, दिवस
अबइत छथि मुँह लटकौने
तोहर प्रबल - प्रताप,
तेज पुञ्जे ने रहथु दिवाकर
बुझि पड़ैत छथि किन्तु
उदित जनु नभ मे पूर्ण निशाकर
पन्द्रह दिन स धिया-पुता केँ
रौदक छैक सेहन्ता
माघ! तोरा डर सँ सटकल छथि
बड़ बड़ आइ बजन्ता
जनता दिस सँ सात बेर
हे माघ, तोहर अभिनन्दन
बरफक बरखा!
तेाँ भारत केँ आइ बनौलह लन्दन?
तप्पत खिच्चड़ि खा खा जे क्यौ
केाँढ़ अपन गरमौलक
सप्पत खा खा पुरिबा तोहर
तनिका पुनि धमकौलक
धरती सँ लय आसमान धरि
मेघक बुकनी छीटल
दूबिक मुँह पर बुझि पड़ैत अछि
अगबे मोती लटकल
बीच बाध मे ठोहि पाड़ि कय
कानय गहुम खेसाड़ी
चैती राहड़ि मे तँ सरिपहुँ
तेाँ कैलह पैसाड़ी
भेल जुआनक मौअति
बूढ़क भितरी हाड़ गलौलह
धिया पुता सँ दाँत बजा कय
तेाँ मुट्ठी बन्हबौलह
बूढ़ बड़द लय अपने दिस सँ
सुर - पुर टिकट कटौलह
की गरीब - गुरबा केँ पुछबइ
धनिकोँ केँ सटकौलह
एहन माघ कहिओ ने देखल
नार पोआर दहायल
अवनिक नोर धुआँ बनि सौँसे
अम्बर पर लहरायल
चान सुरुज, तारा सब ओढ़ने
मेघक, करिया सीरक
माघ मास करइत बुढ़िओ सब
मरती गंगा तीरक
बुद्धि-दायिका देवी वाणी तनिके शरण पकड़ने
बाँचत प्राण, चलत नहि ककरो एहि माघ सँ लड़ने