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माटी..! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
चढ़ कुमार री चाक रही कद
थिरचक माटी भोळी ?
घड़ो लोटड़ी दिवलौ कुंडी
बण कर पड्यो उतरणो,
लिख्यो भाग में फेर न्यावड़ै
री लपटां में बळणो,
जुगां जुगां स्यूं चालै माटी
सागै आ रिगटाळी।
चढ़ कुमार री चाक रही कद
थिरचक माटी भोळी ?
कोई पणघट कोई मरघट
कोई दीरट पासी,
भोग करम रा भोग बापड़ा
पाछा सै खिंड़ ज्यासी
कांकी जोड्यां बगै साथ में
अठै दिवाळी होळी।
चढ़ कुमार री चाक रही कद
थिरचक माटी भोळी ?
पण भूली में पड्या ठीकरा
हूंणी नै कद जाणै ?
अणहूणी नै हूण मान बै
राजी हुवै धिंगाणै,
लेसी खोल काळ रो ठगड़ो
बंधी कमर री नौळी।
चढ़ कुमार री चाक रही कद
थिरचक माटी भोळी ?