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माटी मेरे देश की / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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तिलक लगाकर पावन कर लो भाल को,
माटी मेरे देश की सिन्दूर है!

इस माटी को शीश चढ़ाते देव भी,
इस माटी की महिमा बड़ी महान है।
जन्मदायिनी राम और घनश्याम की,
इस माटी में खेल चुका भगवान है।
विश्व जानता इसके सुयश विशाल को,
इस माटी का कण-कण कोहेनूर है।

मेरी भारत माँ कारूप अनूप है,
हर सपूत है जिस पर तन-मन वारता।
उच्च हिमालय जिसके सिर का ताज है,
रत्नाकर है जिसके चरण पखारता।
पैदा जिसने किया भर-से लाल को
दामन जिसका रत्नों से भरपूर है।

गंगा-यमुना सी नदियाँ बहती जहाँ,
नैसर्गिक हैं जिसके दृश्य लुभावने।
ज्ञान दिया केशव ने अर्जुन को जहाँ,
गूंज रहे गीता के बोल सुहावने।
देख कला-कौशल को और कमाल को
चूर-चूर जगती का हुआ गुरूर है।

सत्य-अहिंसा के पालक जन्में यहाँ,
लिया सुदर्शन चालक ने अवतार भी।
प्यार लुटाया गया मनुजता के लिए,
हुआ दुष्ट दानव-दल का संहार भी।
लड़े चुनौती देकर रण में काल को
उन वीरों की गाथा जग मशहूर है।

लिखी रक्त की स्याही से इतिहास में,
वीर नारियों ने वीरत्व कहानियाँ।
आँच न आने दी सतीत्व को, आग में,
कूद पड़ी थीं साथ सहस्रों रानियाँ।
भेंट किया हँसकर जौहर की ज्वाला को,
तन देकर पाला पावन दस्तूर है।

चमक रही राणा प्रताप की आज भी,
हल्दीघाटी में रक्तिम तलवार है।
गूंज रही जीजाबाई के लाल की,
दिशा-दिशा में अब भी जय-जयकार है।
विफल किया जिसने दुश्मन की चाल को,
व्याप्त धरातल पर जिसका यश-नूर है।

भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू, चंद्र का,
उबल पड़ा लोहू माँ के अपमान से।
आज़ादी का लिखा अमर इतिहास है,
लक्ष्मीबाई ने अपने बलिदान से।
रणचंडी बन धारण कर करवाल को,
किया फिरंगी शासन का मद चूर है

लाज, गोखले, गांधी, नेहरू, लाल ने,
जीवन दे रक्खी माता की लाज है।
स्वतंत्रता ही जिनका पावन ध्येय था,
हर भारतवासी को जिन पर नाज़ है।
काट जिन्होंने परवशता के जाल को,
दाग़ किया माँ के दामन का दूर है।