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माटी रो सीर / ओम अंकुर
Kavita Kosh से
गुवाड़ बिचाळै
बाळपणै में
लगायो नीम
म्हारा बापू
अब
हुयग्यो मोटो
घालतो घेर घुमेर
जिणरी डाळ्यां
बांध पालणो
हिंडावती
गावती
म्हारी मा
म्हारै हंसता
मुळकतो नीम
जिण री छियां
ढाळ माचो
मैटता थाकेलो
म्हारा बापू
तो सुसता ई
लेवती मा
नीम...
आज निरच्यू खाली
गुवाड़ बिचाळै
दिन-दिन सूख'र
बणग्यो ठूंड
ढळकावै आंसू
पण पूछै कुण
म्हारा बापू
रुजगार रै मिस
आयग्या स्हैर
पण नीम कठै जावै
सीर जिको है
इण माटी सूं।