माणस की ज्यान बचावैं अपणी / रणवीर सिंह दहिया
माणस की ज्यान बचावैं अपणी ज्यान की बाजी लाकै।।
फेर बी सम्मान ना मिलता लिखदे अपणी कलम चलाकै।।
मरते माणस की सेवा मैं हम दिन और रात एक करैं
भुला दुख और दरद हंसती हंसती काम अनेक करैं
लोग क्यों चरित्रहीन का तगमा म्हारे सिर पै टेक धरैं
जिसी सम्भाल हम करती घर के नहीं देख रेख करें
घर आली नै छोड़ भाजज्यां देखै बाट वा ऐड्डी ठाकै।।
फ्रलोरैंस नाइटिंगेल नै नर्सों की इज्जत असमान चढ़ाई
लालटेन लेकै करी सेवा महायुद्ध मैं थी छिड़ी लड़ाई
कौण के कहवैगा उस ताहिं वा बिल्कुल भी नहीं घबराई
फेर दुनिया मैं नर्सों नै या मानवता की थी अलख जगाई
बाट देखते नाइटिंगेल की फौजी सारे ही मुंह बाकै।।
करैं पूरा ख्याल बीमारां का फेर घर का सारा काम होज्या
डाक्टर बिना बात डाट मारदे जल भुन काला चाम होज्या
कहवैं नर्स काम नहीं करती चाहवै उसकी गुलाम होज्या
मरीज बी खोटी नजर गेर दें खतम खुशी तमाम होज्या
दुख अपणा फेर बतादे रोवां हम किस धौरै जाकै।।
काम घणा तनखा थोड़ी म्हारा थारा शोषण होवै क्यों
सारे मिल देश आजाद करावां फेर जनता रोवै क्यों
बिना संगठन नहीं गुजारा जनता नींद मैं सोवै क्यों
बूझ अंग्रेज फिरंगी तै यो बीज बिघन के बोवै क्यों
रणबीर सिंह देवै साथ म्हारा ये न्यारे छन्द बणाकै।।