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माता-पिता छोड़कर चले गए / येहूदा अमिख़ाई / विनोद दास

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 माता-पिता
बच्चे को उसके दादा-दादी के पास छोड़कर
नीले सागर के किनारे रंगरेलियाँ मनाने चले गए ।
आँसू -गिड़गिड़ाना बच्चे के काम ज़रा भी न आया ।
दादा-दादी ने अपने आँसू

जलजला आने के पहले से ही हिफ़ाज़त से रखे हैं,
रुलाई के पुराने मीठे आसव की तरह ।
बच्चे की रुलाई अभी नई और नमकीन है
उसके माता-पिता की समुद्री रंगरेलियों की तरह
वह बच्चा फिर जल्दी अपने ही में रम जाता है — सख़्त पाबन्दियों के बावजूद ।

फ़र्श पर बैठकर वह सभी चाकुओं
मसलन धारदार,दाँतदार और लम्बे चाकुओं को बेहद सलीके से
उनकी नाप और ख़ूबियों के हिसाब से सजाता है ।
हर चीज़ के लिए एक दर्द और हर दर्द के लिए एक चाक़ू ।
शाम को माता-पिता लौटते हैं

तब वह बिस्तर में गहरी नींद में होता है ।
इस तरह वह अपनी ज़िन्दगी में धीरे-धीरे पकता है ।
कोई नहीं जानता कि इस तरह पकने से उसका क्या होगा
क्या वह नर्म बनेगा या सख़्त से सख़्त होता जाएगा
एक अण्डे की तरह ?

खाना भी इसी तरह पकता है ।
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अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास