भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माता-पिता - 1 / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’
Kavita Kosh से
माँ-बाप के उपकार,
देते हमें उपहार।
सेवा करें हम आज,
जीवन मिले तब ताज।
माँ से बने परिवार,
विष्णु पिता अवतार।
माँ शब्द है अहसास,
तो बाप शब्द है खास।
नूतन रचे इतिहास,
सपना दिखे जब खास।
मिलता जगत सम्मान,
शुभ फल मिले परिणाम।
माँ का मिले आशीष,
पग पे झुका दो शीश।
माता-पिता का हाथ,
रखना सदा तू साथ।
बूढ़े हुए माँ -बाप,
समझो वचन ये आप।
पा जिन्दगी में प्यार,
रह माँ जिगर में यार।