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माता-पिता - 2 / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’

मात-पिता जग सारे,
भूल गये सुत प्यारे।
जा परदेश विराजे,
बैठ वहाँ बिन काजे।

माँ ममता अनुरागी,
पिता बने सहभागी।
दर्द दवा महतारी,
माँ जग में उपकारी।

बालक रोग शरीरा,
माँ उर होत अधीरा।
देव बसे गृह मेरे,
कष्ट मिटे शिशु तेरे।

माँ बिन बालक रीता,
माँ जग में गृह भीता।
सृष्टि बसी जग सारी,
पूजन माँ अधिकारी।