माता बणकै बेटी जणकै बण मैं गेर गई / लखमीचंद
माता बणकै बेटी जणकै बण मैं गेर गई
पत्थर केसा दिल करके नै तज बेटी की मेर गई
नौ महीने तक बोझ मरी और पेट पाड़ कै जाई
लहू की बून्द गेर दी बण मैं शर्म तलक न आई
न्यारी पाट चली बेटी तै करली मन की चाही
पता चल्या न इसी डाण का गई कौणसी राही
ऊंच नीच का ख्याल करया ना धर्म कर्म कर ढेर गई
लड़की का के खोट गर्भ तै लेणा था जन्म जरुरी
नो महीने मैं पैदा हुई और कोन्या उमर अधूरी
इसी मां कै होणा था जो बेअक्कल की कमसहूरी
या जीवै जागै सफल रहै भगवान उमर दे पूरी
जननी बणकै बेटी सेती किस तरियां मुंह फेर गई
मनै ज्यान तै प्यारी लागै पालन पोषण करूं इसका
कती नहीं तकलीफ होण दयूं पेटा ठीक भरूं इसका
पुत्री भाव नेक नीति बण आज्ञाकार फिरूं इसका
शकुन्त पक्षी का पहरा सै तै शकुंतला नाम धरूं इसका
‘लखमीचन्द’ कहै दया नहीं आई दिन मैं कर अंधेर गई