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माता भक्ति / 4 / भिखारी ठाकुर

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दोहा

पढ़ भिखारी भजन माला बुढ़शाला के गान।
पाना छियालिस-सैंतालिस में बनल रही सन्तान।
चउबरन किताब किताब में चार बरन के भाव।
कहत भिखारी लिखल बाटे कतिना काई कहाव
जिला छपरा में बा घर, गंगा जो का दिअरपर।

चौपाई

बेटा मतारी से भइलन बेमुख। कइसे किली जीव का सुख॥
गिरत बाटे बजर के ताल। माई के भइलन दुलरूआ काल॥
अइसन जगत में भइल अनित। तकला पर लउकत ना हीत॥
दूध पिआई के मइया पलली। करूआ तेल देहिया में मलली॥
सेवा कइ के कइली सेयान। गुरु बानी के देली गेयान॥
गोड़ में बाटे पनेसुल जूता। पोसले बनी नेपलिया कुत्ता॥
कलिया-रोटी कुत्तवा खाला। हिन्दू के धरम बचवलस भाला॥
एहि खातिर पोसले बानी। जाली चुहानी बिलरिओ रानी॥
एह जून-चढ़ल बा नया कमान। मन के मीट गइल अरमान॥
करत बानी तीरथ बरत जवन-जवन मन बाटे करत।
दूनों बेकत चारो धाम। कइलीं कहीला सीताराम॥
लरिकन में लागल बा मन। टहल करत बा जानी जन॥
नर-तन भइल के सब माजा। मिलल बा नइखे तनिक अकाजा॥
घर में रहत बा नगदा माल। खेत कीनात बा साले-साल॥
मकर में गइलीं परेआग। तबहीं जनलीं जागल भाग॥
अवध-जनकपुर बारम्बार। मथुरा-बृन्दावन लगातार॥
कासी में करिके असनान। गया में कइलीं पिंडा दान॥
ओहिजा से गइलीं बैजनाथ। दुनो बेकत साथे-साथ॥
तब फेर गंगासागर गइलीं। कपिलदेव के दर्शन कइलीं॥
पंडित से देखलाई के पतरा। जगरनाथ के कइलीं जतरा॥
जाई के दर्शन कइलीं नीके। सेत बान रामेश्वर जी के॥
हरिद्वारा से बद्रीधाम। घुमलीं दोनों बेकत तमाम॥
सत्यनारायण ब्रत काथा। गांठ जोराई के साथे-साथा॥
कतिनो परत बाटे अकाल। श्रवन करीले साले-साल॥
बरत एकादसी हरदम रहीला। कथा रामायन के नित कहीला॥
निरगुन-सरगुन मानीला खूब। पथल पर के हउई दूब॥
माई-बाबू के एके हम। ईश्वर नइखन देले कम॥
हमरा जड़ से बाड़न चार गो पूत। चारो एक-से-एक सपूत॥
असरा लागल बाटे भारी। अचरज इहे ह कहत ‘भिखारी’॥

दोहा

अब बनाइब धरमशाला, इनरा-पोखरा समेत॥
कहत ‘भिखारी’ कुतूपुर के, जइसन बनल बा नेत॥


चौपाई

कउँचत बाड़न कतिना जीव। हमना बोलीं लगा के घीव॥
हमरा सोझा केहुए बोली। फगुआ लेखा खेलाइब होली॥
बढ़ते आइल अकिल-गेयान। कबहूँ करीले नीमन बेयान॥
पटिदारी के हिस्सा लेबऽ। बाप के खाइल करजा ना देखऽ॥
ओह मतवा के कुछ ना कइलीं। जेकरा देह से बेटा कहइलीं॥
जब बेटा पैदाइस भइल। जनलीं जे अब सब दुःख गइल॥
भर पेट भोजन मिलत नाहीं। ई दुःख अखड़त बा मन माहीं॥
तन पर लुगरी फटही बाटे। दुलरु जनमल पूरा चपाटे॥
रोवली मइया जार-बेजार। तोहे बिअइलीं जंघा फार॥
कतिना देवकुर धावल गइलीं। कइ ओझा का हाथे पिटइलीं॥
छठ-एतवार के रहलीं निखंड। सुरुज बाबा के भइलीं दंड॥
गंगा-जमुना केतना नहइलीं। खटा-मीठा मुँह तर ना धइलीं॥
अइसन तपस्या कइलीं कठोर। अब ढरकत बा आँख के लोर॥
कहत भिखारी चेतऽ सबेर। नाहीं त डुबे चाहत बा बेर॥
इलम पढ़के भइल माल। माई के भइल कुत्ती के हाल॥