माता भक्ति / 7 / भिखारी ठाकुर
प्रसंग:
कृषि सभ्यता में गाय का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान था। पूरी कृषि सभ्यता का केन्द्र-बिन्दु गाय थी। इसी की कृपा से संतति का पालन-पोषण होता था। पढ़-बढ़ पर पुत्र अपने माता-पिता से अधिक अपनी पत्नी को महत्त्व देने लगा है। सारी सम्पत्ति पर जिस माता-पिता का अधिकार है, वे भी पुत्र और पुत्र-वधुओं के गलत आचरण के खिलाफ बोलने से डरते हैं।
चौपाई
हिन्दू चाहे मुसलमान सब कोई, जे मइआ से पैदा होई॥
मन लगाई के सुनी बानी। एह में कछुक ना बाटे हानी॥
मइया आस बेटा कइली। नीमन चीज बबुआ के धइली॥
बबुआ भइलन बहुत होशियार। सगरो से कइलन सरोकार॥
बबुआ इज्जत बढ़वलन भारी। चार लाख बाबू के गारी॥
मेहर का पाछा से डोलत। जहर अइसन मइया से बोलत।
बेटा के सुनके अटपट बोल। लरिका-सेयान बजावत ढोल॥
बबुआ नीमन देखवलऽ खेल। लागे लागल पूरा झमेल॥
का लगीहन चौपाई-दोहा। सासु से झगड़त बाड़ी पतोहा॥
गिहिथिन बनत लागत ना देरी। कानवाँ रहे से बनल पसेरी॥
लउकत बटे अचरज भारी। जेकर ह घर के दौलत सारी॥
से ना डर से बाटे बोलत। अवसर पाई के बानी खोलत॥
कुतुबपुर के कहत ‘भिखारी’। घर-घर पसरल अत्याचारी॥
जिला छपरा में बा घर। गंगाजी का दियर पर॥
बेटा मतारी से भइलन बेमुख। कइसे मिली जीव का सुख॥
गिरत बाटे बजर के ताल। माई के भइलन दुलरुआ काल॥
अइसन जगत में भइल अनीत। ताकला पर लउकत ना हित॥