माँ
रस है
छंद है
अलंकार है
सृजन की सत्कार है
दोहा है,
सोरठा है,
चौपाई है
खय्याम की रुबाई है
सूर के पद है
तुलसी के मंत्रो का नद है
श्रुति की ऋचाओं का अनहद स्वर है
स्मृतियों की सहचर है
उपनिषद् का ज्ञान है
पुराणों का प्राण है
शास्त्रों से बहुत ऊपर है
शस्त्रों से बहुत भारी है
सृष्टि भी जिसकी आभारी है
सृष्टि से इतर
सृष्टि का दर्शन है
उसी में जीवन का प्रदर्शन है
सम्भावनाये हैं
संत्रास भी
हर पल जी सकने का आभास भी
प्रकृति की प्रीति है
वही जगत की रीति है
सागर से भी अथाह
अँधेरे से भी स्याह
सूर्य से भी प्रज्जवलित
हिम सी गलित
गंगा
जमुना
सरस्वती
साक्षात् संगम की गति
संतति के सुख के लिए
आजीवन व्रती
जगत के फलक से असीमित सत्ता
शब्द सामर्थ्य से परे उसकी महत्ता
तीन लोक,
चौदह भुवन में
एकमात्र अधिष्टात्री
सकल ब्रह्माण्ड में एकमात्र
सहयात्री
माया
ममता
क्षमता
समता
ईर्ष्या
करुणा
दया
क्षमा
माया
छाया
विद्या
प्रज्ञा
सांस
उच्छ्वास
जीवन की इकलौती आस
नहीं रखे उदास
हर पल है आभास
यही कहीं है पास
साल,
ऋतु
माह
पक्ष
दिन
रात
पल,
छिन
सभी में तू ही समायी है
बहु प्यारी है, माई है।