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माथे पर बल / रसूल हमज़ातफ़ / साबिर सिद्दीक़ी

माथे पे बल, है बिफ़री हुई बीसवीं सदी
हमको, सदी के बेटों को कुछ शर्म है न लाज ।
दुनिया में इससे पहले कभी झूठ यूँ न था,
इतना लहू बहा था न दुनिया में, जितना आज ।

पीछे की ओर देखती है बीसवीं सदी
हम हैं सदी के बेटे, बधाई हो, ज़िन्दाबाद !
हमसे ज़ियादा दुनिया किसी दौर में कभी,
शायद ही झूठ-जुल्म से कर पाई हो जिहाद ।

रूसी भाषा से अनुवाद : साबिर सिद्दीक़ी