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माथे महावर पाँय को देखि महावर पाय सुढार ढुरीये / देव
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माथे महावर पाँय को देखि महावर पाय सुढार ढुरीये ।
ओँठन पै ठन वै अँखियाँ पिय के हिय पैठन पीक धुरीये ।
सँग ही सँग बसौ उनके अँग अँगन देव तिहोर लुरीये ।
साथ मे राखिये नाथ उन्हेँ हम हाथ मे चाहतीँ चार चुरीये ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।