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माधव! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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माधव! मुझको भी तुम अपनी सखी बना लो, रख लो संग।
खूब रिझाऊँगी मैं तुमको, रचकर नये-नये नित ढंग॥
नाचूँगी, गाऊँगी, मैं फिर खूब मचाऊँगी हुड़दंग।
खूब हँसाऊँगी हँस-हँस मैं, दिखा-दिखा नित तूतन रंग॥
धातु-चित्र पुष्पों-पत्रोंसे खूब सजाऊँगी सब अंग-
मधुर तुम्हारे, देख-देख रह जायेगी ये सारी दंग॥
सेवा सदा करूँगी मन की, भर मनमें उत्साह-‌उमंग।
आनँदके मधु झटके से सब होंगी कष्टस्न-कल्पना भंग॥
तुम्हें पिलाऊँगी मीठा रस, स्वयं रहँगी सदा असंग।
तुमसे किसी वस्तु लेनेका, आयेगा न कदापि प्रसंग॥
प्यार तुम्हारा भरे हृदय में, उठती रहें अनन्त तरंग।
इसके सिवा माँगकर कुछ भी, कभी करूँगी तुम्हें न तंग॥