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मानव! मानवता धारण कर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग परज-ताल कहरवा)
 
मानव! मानवता धारण कर, तभी सफल होगा जीवन।
मोहावृत हो विषय-भोग-रत मत हो, व्यर्थ न खो जीवन॥
मानवताका रूप एक ही-ईश-समर्पित हो जीवन।
तन-मन-मति-रति हों प्रभुमें ही, प्रभु, सेवामय हो जीवन॥
सब जीवोंमें प्रभु-दर्शन हो, प्रभु-चिन्तनमय हो जीवन।
राग-रोषसे रहित, सहित संतोष, मधुरतम हो जीवन॥
पर-निन्दा, पर-दोष-कथन-चिन्तनसे विरहित हो जीवन।
पर-सुख-संरक्षक, भक्षक पर-दुःख निरन्तर हो जीवन॥
आशा-तृष्णा-त्यागी, अति प्रभु-पद-‌अनुरागी हो जीवन।
प्रभुगत-चित, परायण प्रभुके, पूर्ण निवेदित हो जीवन॥
अग-जगमें प्रभुके दर्शन कर, शान्ति-विरतिमय हो जीवन।
प्रभुमें ओत-प्रोत सर्वदा, सुखी निरतिशय हो जीवन॥