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मानवता का आज हो रहा धरती पर अपमान / रंजना वर्मा

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मानवता का आज हो रहा, धरती पर अपमान
किन्तु किसे हो पाया है इस, सच्चाई का ज्ञान

कौन साथ दे पाया किसका, किसने किया विरोध
संकट में ही है हो पाती, अपनों की पहचान

बहुत देर तक रहे ताकते, नील गगन की ओर
शक्ति तौलते रहे स्वयं की, भरनी जिन्हें उड़ान

हरियाली के द्वीप जहाँ पर, हो पीपल की छाँव
चलें वहीं पर जहाँ गूँजते, खग के कलरव गान

सहमी खड़ी द्रौपदी अब भी, कौरव दल के बीच
नहीं कहीं वह कृष्ण बचाये, जो उस का सम्मान

होता नहीं स्वर्ण मृग फिर भी, लालच के वश लोग
करा रहे हैं गली गली में, नित अपना अपमान

अभ्यागत आगत का स्वागत, करें चलो इस भाँति
दुख की छाया नहीं अधर पर, हो केवल मुस्कान