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मानवता की रक्षा खातिर / रेनू द्विवेदी

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मानवता की रक्षा खातिर,
हटा तीन सौ सत्तर!

झेलम पानी गिरि नद उपवन,
तड़प रहे थे पल-पल!
केशर की क्यारी में बस थी,
दहशत वाली हलचल!

कोमा में कश्मीर हुआ था,
बस साँसें थी अंदर!
मानवता की---

अमन चैन की खुशबू फैली,
स्वस्थ हुई फिर घाटी!
नयी भोर पाकर मुस्काई,
जन्नत की शुचि माटी!

पुनः स्वर्ग में देव बसेंगे,
पावन होगा मंजर!
मानवता की---

लाल चौक पर ध्वज लहराए,
खुशियों ने दी दस्तक!
विश्व-गुरू भारत के सम्मुख,
सारा जग नतमस्तक!

दिलवाला है भारत मेरा,
रहता मस्त कलन्दर!
सं
मानवता की---