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मानव-जीवन में कटुता-कठिना‌ई / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग परज-ताल कहरवा)
 
मानव-जीवन में कटुता-कठिना‌ई विविध भाँति आतीं।
कभी-कभी वे अति भीषण बन तन-मनपर हैं छा जातीं॥
जो निराश हो रोने लगता, उसपर वे बढ़तीं भारी।
विविध प्रकारोंसे बहुसंखयक बन, अति दुख देतीं सारी॥
हो भयभीत, छोडक़र साहस, जो कापुरुष भाग जाता।
भाग न पाता, गिर पड़ता वह, बुरी तरह कुचला जाता॥
पर जो कर विश्वास ईश्वरी बलपर, समुख डट जाता।
उससे डर वे भाग छूटतीं, नहीं दुखी वह हो पाता॥