मानव-रक्त का चस्का / निदा नवाज़
पुलवामा नरसंहार पर
ओ मेरी घाटी के युवाओं
तुम कहाँ चल दिए हो
सफ़ेद पोशाक पहनकर
उम्र के इतने सवेरे-सवेरे
क्या यह भी कोई
जाने का समय है, भला !
तुम्हारे पीछे ये
जनाज़ों के विशाल जुलूस
कहाँ अच्छे लगते हैं
मरने की भी कोई उम्र होती है
मेरे लाड़लो !
आबिद, क्या तुम्हें भी
इतनी जल्दी थी जाने की
तुम तो परसों ही
हैदराबाद के उस अस्पताल से
हफ़्ते भर की छुट्टी पर घर आए थे
जहाँ तुम मियां-बीवी काम करते थे
तुम्हारी एम०बी०ए० की डिग्री
अब एक प्रश्नचिन्ह बन गई है
और प्रश्नचिन्ह बन गई है
तुम्हारी इण्डोनेशियायी पत्नी भी
जब से तुम गए हो
तुम्हारी तीन महीने की बेटी
अदीबा बिलख रही है ।
और तुम मुर्तज़ा...
तुमने तो पिछले ही महीने
आठवीं कक्षा पास की थी
क्रिकेट तुम्हारा जुनून था बेटे
और तुम अक़सर कहते थे
कि तुम्हें राष्ट्र के लिए खेलना है
क़ातिलों ने तुम्हें
ज़िन्दगी की कोई पारी खेले बिना ही
आऊट किया ।
और तुम आमिर, सुहेल, शहबाज़
शाहनवाज़, तौसीफ़ तुम सब भी...
तुम्हारे जिस्मों पर
सफ़ेद कफ़न से झाँकते
ये रिसते घाव
ये लाल-लाल फूल
मुझसे देखे नहीं जाते
मुझसे नहीं देखे जाते
ये असँख्य नरसंहार
उन्नीस सौ नब्बे में
पाँच नरसंहार
एक सौ तिरानवे की
निर्मम हत्या
उन्नीस सौ इक्यानवे में
आठ नरसंहार
एक सौ पाँच की हत्या
उन्नीस सौ बानवे में
सात नरसंहार
सड़सठ की हत्या
उन्नीस सौ तिरानवे में
नौ नरसंहार
एक सौ बत्तीस का क़त्ल
पिछले तीस वर्षों में
असँख्य नरसंहार
हज़ारों आम लोगों की
दर्दनाक हत्याएँ
अब हम नरसंहारों
और निर्दोषों की हत्याओं
की गणना भूल गए हैं
भूल गए हैं
विशाल क़ब्रिस्तानों की सँख्या
मुझसे नहीं देखा जाता है
तुम्हारी माँओं का रुदन
बहनों का विलाप
तुम्हारे पिताओं की
सूखी सहमी आँखें
क्या तुम नहीं जानते थे
कि शिकारी ताक़ लगा कर बैठे हैं
और तुम बेपरवाह कुलाचें भर रहे थे
आज़ाद हिरणों की तरह ।
उन्हें इनसानी ख़ून का चस्का लगा है
उनके मन में पलने वाले फ़ासीवाद को
हर आतँकी का संरक्षण प्राप्त है
हम सब उनके निशाने पर हैं
और निशाने पर है हमारी अस्मिता
हमारी मर्यादा, हमारी पहचान
उनके निशाने पर है हमारा पूरा देश
जिसकी जड़ों को वे
खोखला करने पर आमादा हैं ।