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मानव अकेला / अज्ञेय

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     भीड़ों में जब-जब जिस-जिस से आँखें मिलती हैं
     वह सहसा दिख जाता है
     मानव अंगारे-सा-भगवान्-सा
     अकेला।
     और हमारे सारे लोकाचार
     राख की युगों-युगों की परते हैं।

जनवरी, 1958