भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मानव जहाँ बैल घोड़ा है / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
मानव जहाँ बैल घोड़ा है,
कैसा तन-मन का जोड़ा है ।
किस साधन का स्वांग रचा यह,
किस बाधा की बनी त्वचा यह ।
देख रहा है विज्ञ आधुनिक,
वन्य भाव का यह कोड़ा है ।
इस पर से विश्वास उठ गया,
विद्या से जब मैल छुट गया
पक-पक कर ऐसा फूटा है,
जैसे सावन का फोड़ा है ।