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माना, गले से सबको लगाता है आदमी / प्राण शर्मा
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माना,गले से सबको लगाता है आदमी
दिल में किसी -किसी को बिठाता है आदमी
कैसा सुनहरा स्वांग रचाता है आदमी
ख़ामी को अपनी ख़ूबी बताता है आदमी
सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से
दुःख में हमेशा शोर मचाता है आदमी
दुनिया से ख़ाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी
हर आदमी की ज़ात अजीबो-ग़रीब है
कब आदमी को दोस्तों ! भाता है आदमी
पैरों पे अपने ख़ुद ही खड़ा होना सीख तू
मुश्किल से आदमी को उठाता है आदमी
दिल का अमीर हो तो कभी देखिये उसे
क्या-क्या ख़जाने सुख के लुटाता है आदमी.