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माना कि आदमी को हंसाता है आदमी / प्राण शर्मा

माना कि आदमी को हंसाता है आदमी
इतना नहीं कि जितना रुलाता है आदमी

माना,गले से सबको लगाता है आदमी
दिल में किसी-किसी को बिठाता है आदमी

कैसा सुनहरा स्वांग रचाता है आदमी
खामी को खूबी बताता है आदमी

सुख में लिहाफ ओढ़ के सोता है चैन से
दुःख में हमेशा शोर मचाता है आदमी

हर आदमी की ज़ात अजीब-ओ -गरीब है
कब आदमी को दोस्तो भाता है आदमी

सच्चाई सामने अगर आये तो किस तरह
हर सच्ची बात दिल में छिपाता है आदमी

आक्रोश, प्यार, लालसा, नफरत, जलन, दया
क्या-क्या न जाने दिल में जगाता है आदमी

ख़्वाबों को देखने से उसे रोके क्यों कोई
ख़्वाबों से अपने मन को लुभाता है आदमी

दिल का अमीर हो तो कभी देखिये उसे
क्या- क्या खज़ाने सुख के लुटाता है आदमी

पैरों पे अपने खुद ही खडा होना सीख तू
मुश्किल से आदमी को उठाता है आदमी

दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी