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मानिए न हार / प्रेमलता त्रिपाठी

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बिखरा हुआ समाज,सहे वेदना अपार ।
बाधा हरो सुजान,सहज नीति लो विचार ।

हारा लगे विवेक, सभी कर रहे विवाद,
विश्वास खो अधीर,उगलते सतत विकार ।

आस्था हृदय विशेष,करो धर्म-कर्म नेक,
श्री राम जी सहाय, सुने दीन की पुकार ।

तज मोह निर्विकार,भजो दीनबंधु नाथ,
मंदिर बने विशाल,खुले नित प्रवेश द्वार ।

अनुबंध हो सप्रेम, मिले राह भी अनेक,
निर्माण मूल स्रोत, यही मानिए न हार ।