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मान्योंडर / बृजेन्द्र कुमार नेगी

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प्रकृतिक संसाधनु से परिपूर्ण
पर सौ-सुबिधों से अपूर्ण
उत्तराखंड कु यकुलु
मजबूर, असहाय बृध
झुकीं कमर, हताश मुखिड़ी
रकर्यान्द सक्स्यांद, तंगत्यांद
उकलि-उंदरी कु बाटु पर
रुफड़ान्द, रबड़ान्द, बबड़ान्द
रोज लांठी कु सार ल
डाखाना आंद-जांद
कि पतनि मान्योंडर
कै दिन आ जान्द।