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मान-अभिमान / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
स्वाति बूँद-सी मैं
तुम्हारी सीपी-सी आँखों में
खुद को
मोती होते देख
अभिमान से भर उठती हूँ,
पर जब
तुम स्वयं ही
इस शुभ्र मोती को
आँसू-सा ढुलका देते हो,
तब ऐसे में
मेरे मान करने का प्रश्न ही
कहाँ शेष रह जाता है…!