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मान बड़ाई, इर्षा, आशा, तृष्णा, चार / गंगादास

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मान बड़ाई, ईर्षा, आशा, तृष्णा, चार ।
ये चारों जब तक रहें, जप-तप सब रुजगार ।।

जप-तप सब रुजगार नफा पावै हो टोटा ।
भरम चक्र में पड़ा रहे भगवत से चोटा<ref>चोर</ref> ।।

गंगादास कहे स्वपच लोभ, खल क्रोध कसाई ।
इनसे बचके रहो सभी हैं महा दुखदाई ।।

शब्दार्थ
<references/>