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मान लिया वो ही जो दर्पण कहता है / ओमप्रकाश यती
Kavita Kosh से
मान लिया वो ही जो दर्पन कहता है
वर्ना अपना चेहरा किसने देखा है
चार मुलाक़ातों में लगता है ऐसा
जैसे तुमसे सौ जन्मों का नाता है
होड़ लगी है सबसे आगे रहने की
बच्चों पर ये बोझ ज़रा कुछ ज़्यादा है
देखो तो दौलत ही सुख है,सब कुछ है
सोचो तो ये सब नज़रों का धोखा है
सबकी अपनी-अपनी एक लड़ाई है
साथ नहीं कोई, हर शख्स अकेला है