माफ़ करना बापू! / दिनेश जुगरान
बाज़ार से लौट कर
आए हुए
ख़रीददार
क्यों बैठे हो
बदन को दोहरा किए हुए
आज भी लगता है
सौदा नहीं हो पाया
तुम्हारे संस्कारों का
तभी तो
दहलीज पर खड़ी बच्ची के
ख़ाली हाथों में
बताशा
न खिलौना रखा तुमने
पिछले कई सालों की
मुर्दनी
कंधों पर ओढ़े हुए
तुम जब अंदर आए थे
मैं समझ गया था
तुम्हें सड़कें
ताज़ा खून से गरम मिली होंगी
और पत्तों में काँटे उग आए होंगे
उफ! बाहर कितनी तेज़ हवा है
अंदर कितनी उमस
माफ़ करना बापू!
मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता
किसी तरह का आश्वासन नहीं दे सकता
मेरे पास
वो क़िस्से भी नहीं हैं
जिन्हें बचपन में सुनाकर तुम
हमंे बहलाया करते थे
हर रोज़
लौटते हो तुम
अपने संस्कारों को सीने से लगाए हुए
और हर रात मेरा मुन्नू
अपनी का कॉपी में
बंदूक बनाकर
तुमको भविष्य के लिए
आतंकित करता रहता है
मेरा अंधेरा पराजित कोना
तुम्हारा संस्कारों का पुलिन्दा
और मुन्ना की बंदूक
एक ही छत के नीचे
ये कैसा समझौता है बापू!
मैं तुम्हारे लिये कुछ कर नहीं सकता
तुम्हें मुझसे उम्मीद भी नहीं है
और मुन्ना की बंदूक
तैयार है
भविष्य को तय करने के लिए