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माफ करना आज यदि मैं हँस न पाऊँ / प्रमोद तिवारी

माफ करना
आज यदि मैं हँस न पाऊँ
मैं सुबह
घर से अकेला ही चला था
शाम को
लौटा थकन के साथ
एक छोटा सा
हमारा घर
बताओ
मैं कहां सोऊँ
कहाँ इसको सुलाऊँ

मन हुआ
जी भर के रोने का
कभी तो
रह गये
बस मार के मन को
खूब रोऊँ
आज थोड़ी
छूट हो तो
नोक पर
चाकू की
कब तक मुस्कुराऊँ

ज़िन्दगी भर की
कमाई से खरीदी
एक चादर
और कुछ सपने
इसलिए ही पूँछता हूँ
हर किसी से
किस तरह ओढूँ
इसे कैसे बिछाऊँ