भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मामले को दबा के रहना था / दीपक शर्मा 'दीप'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मामले को दबा के रहना था
जी हमें लात खा के रहना था

और कालिख भरी कुठरिया में
दाग़ से बच-बचा के रहना था

मुश्किलों को हँसाये रखने को
ज़िन्दगी को रुला के रहना था

पैर हाथों में ले के चलना और
हाथ ऊपर उठा के रहना था

ख़ैर छोड़ो जु़बां के हालो-हश्र
नाक गोया कटा के रहना था

हाए फँसना भी था उसी में जो
एक कांटा फँसा के रहना था

लाश अपनी उठा के कांधे पर
आग मुँह में लगा के रहना था