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मामा अपनी छुट्टी समझो / सुरेंद्र विक्रम
Kavita Kosh से
चलो-चलो, अब बहुत हो चुका
वही पुराना वादा कोरा,
चंदा मामा, कहो कहाँ है
दूध-भात का भरा कटोरा!
बचपन में जब हम भी रोए
दादी थी बहलाया करती,
हाथ उठाकर आसमान में
तुमसे बात कराया करती।
कहतीं-जब चुप हो जाओगे
तब आएँगे चंदा मामा,
दूध-भात का भरा कटोरा,
तब लाएँगे चंदा मामा।
दादी जी की बात मानकर,
हम सब चुप हो जाया करते
हमें याद है बहुत दूर से
मामा, तुम बहलाया करते।
प्यारे-प्यारे चंदा मामा
नहीं चलेगा एक बहाना,
दूध-भात का भरा कटोरा
लिए हाथ में जल्दी आना।
अगर नहीं तुम जल्दी आए
कल से अपनी छुट्टी समझो,
कभी नहीं हम बात करेंगे
मामा अपनी कुट्टी समझो!