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मामा / मृदुला शुक्ला
Kavita Kosh से
मामा जब-जब आबै छै,
हमरा खुब्बे भाबै छै।
बेलुन, बिस्कुट, सेब, संतरा
झोला भरी-भरी लाबै छै;
कंधा पर लै हमरा हूनी
सौंसे शहर घुमाबै छै;
कैरम, लूडो, किरकेट, बॉलो
खेलै लेॅ सिखलाबै छै;
डिस्को, डांडिया, ब्रेक, भांगड़ा
सबठो नाच नचाबै छै;
कहै कहानी, कहै चुटकुला,
सबकेॅ खूब हँसाबै छै;
मामा जब-जब आबै छै।