भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मामूली आदमी का घोषणापत्र-2 / अरविन्द श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मामूली आदमी हूँ
दिख जाऊँगा सभी जगह
रिक्शा-ठेला खींचता,
मोटिया ढोता
खेत - खलिहान,
स्टेशन-बस अड्डा

सभी जगहों पर
हम ही हम
  
आप करो चिंता
शेयर-सत्ता,
ओजोन-अन्तरिक्ष की
  
मुझे करनी है
सवेरे की !