मामूली कविता / देवी प्रसाद मिश्र
एक मामूली कविता लिखने का
मज़ा ही कुछ और है एक ऐसी कविता
जो अंगूठे के बारे में हो या
अचानक शुरू हो गई शाम के बारे में
या किसी स्टेशन के बारे में जिससे
होकर आप कभी गुज़रे थे या
एक ऐसे बड़े-से गेट के लोहे के बारे में
जिसको छूकर ये लगता था कि
जीवन में नहीं बची है कोमलता
एक मामूली कविता उन
दोस्तों के बारे में भी लिखी जा सकती है
जो चाय का इंतज़ार करते हुए बैठे होते हैं
एक दूसरे को देखते हुए
और ये सोचते हुए कि मृत्यु
हम सबके लिए भी है
मामूली कविता में समकालीनता
के किसी कोने में पड़े रहने का
अनोखापन होता है हाशिये पर
बने रहने का चयन
केन्द्र में होने की
निर्लज्जता से निजात पाने
की हिकमत कि जैसे
किसी ने दरवाजे पर खाट
डालने का फ़ैसला किया हो ज्यादा
आसमान और ज्यादा हवा के लिए
घर की सुरक्षा से ऊबकर
यह डायरी
लिखने जैसा होता है — शैलीविहीन
कुछ मामूली वाक्य कि जिनका कर्ता
लापता हो और कुछ क्रियाओं से ही
चला लिया गया हो काम
एक मामूली कविता लिखने का मज़ा
इसलिए भी है कि वो किसी
पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं
बनेगी और न ही अमर बनाने में निभाएगी कोई
भूमिका उस पर पुरस्कार भी नहीं दे पाएगा
ताकतवर साहित्यिकों का कोई गिरोह ।