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माया केतनो बिटोरबऽ एक दिन जाहीं के परी / महेन्द्र मिश्र
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माया केतनो बिटोरबऽ एक दिन जाहीं के परी।
कोठा अमारी सबहीं छोड़हीं के परी/माया।
आपन पराया कोई संगे ना जइहें
हंसा अकेला जइहें रोअहीं के परी/माया।
दाया धरम तुहूँ एको न कइलऽ हो
माल खजाना रहिहें इहवें धरी/माया।
जब यमराजा तोहे पकड़ि ले जइहें रे
कोई ना छोड़इहें तोहरा चलहीं के परी/माया।
खाली हाथे जइबऽ बंदा परिहें गला में फंदा
खाटी के पाटी उल्टा धरहीं के परी/माया।
कहत महेन्द्र अबहूँ चेतो सबेरा हो
छोड़ चतुराई भजले हरी-हरी/माया।