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माया मण्डप / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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सुन्दर अनूप एक सभा के मण्ड प रामा।
राज काज खातिर बनवावैय हो सांवलिया॥
पाँच हजार गज भूमियो भवनमां हो।
बनी के तैयार जब होलैय हो सांवलिया॥
दूर दूर से लोग सब देखे सुने आवैय रामा।
देखत न अखिया अधावेय हो सांवलिया॥
कुछ काल, सुख शांति सगरो बिराजैय रामा।
पाण्डव के नाम यश होबैय हो सांवलिया॥
हरि गुण गान आत बीणा बजात रामा।
नारद जी पाण्डव के राज हो सावलिया॥
मुनि के प्रणाम करि, पूछत कुशल छेम।
बड़ भाग्य दरशन भेल हो सांवलिया॥