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मायूस ज़िन्दगी का ठिकाना नहीं रहा / कैलाश झा 'किंकर'
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मायूस ज़िन्दगी का ठिकाना नहीं रहा
जीवन में अब वह साज सुहाना नहीं रहा।
अरमान ढूँढ़ता है निराली हँसी खुशी
पर प्यार-व्यार का वह जमाना नहीं रहा।
हालात हो गये हैं जो बदतर यहाँ-वहाँ
अब अम्न-चैन का वह फसाना नहीं रहा।
शाबाश मेरे वीर बहुत नाज़ आप पर
सीमा पर दुश्मनों का निशाना नहीं रहा।
आकाश से गिरा तो रसातल पहुँच गया
टकराव हिन्द से वह पुराना नहीं रहा।