माय के महिमा / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
हमें कुत्ता नै छेकाँ
कि जखनी चाहोॅ दुतकारोॅ
जखनी चाहोॅ पुचकारोॅ।
ई बात अलग छै कि जहिया सें होश होलोॅ छेॅ
हम्में अपना अहं केॅ दबैने छियै
आरो अभ्यास सें बिसरैने छियै!
जहिया बच्चा छेलिये
माय द्वारा कहलोॅ मामूली बातोॅ पर
हमरोॅ अहं जागी जाय छेलै
आरो ऐङना सें बाहर दौड़ी केॅ
परछत्ती पारोॅ सें एक साँसोॅ में
सौंसे ऐङनोॅ ढेला सें भरी दै छेलिये
थकी केॅ चूर होय जाय छेलियै
तेॅ मूँलटकाय केॅ मोखा लग बैठी जाय छेलिये।
तबेॅ ढेलोॅ बन्द होय गेला पर
घरोॅ में नुकैलोॅ माय हँसलँ आबै छेलै
ढेला के चर्चा करने बिना हमरा दुलराय छेलै, मनाय छेलै
जेना सब कुछ माफ! या कुछ नै होलोॅ रेॅहेॅ!
एत्तेॅ दिन बीती गेला पर भी आय भी कभी-कभी
माय के मामूली बातोॅ पर हमरोॅ अहं जागी जाय छै
आरो हमरा तुनकलोॅ देखी केॅ वें मुस्कुराय केॅ कही छै
एकरोॅ बच्चा के आदत नै गेलोॅ छै
ओकरोॅ बूढ़ोॅ आँखी सें अजस्र करुणा के सोत झरै छै
जेकरा सें हमरोॅ मन-प्राण भरी जाय छै
आरो हमरोॅ ‘स्व’ या ‘अहं’ पता नै,
हिरदय के कोन अतल गहराई में डूबी केॅ मरी जाय छै।
यह कारण छै, जबेॅ सें होश सम्हालने छियै।
माय के देलोॅ अजस्र करुणा सें हमरोॅ हृदय भरलोॅ छै
तोंहें बातोॅ के ढेलोॅ चलाय छोॅ
लेकिन हमरोॅ अहं सुगबुगाय तक नै छै।
लेकिन सोचोॅ जबेॅ एखनियों माय के
मामूली बातोॅ पर ऊ कभी-कभी जागै छै
तेॅ एकदम मरिये गेलै ई नै लागै छै।
केॅ जानेॅ, माय के महिमा घटाबै लेली
कखनी ऊ जागी जाय;
आरो हमरा पर दोष लागी जाय!