भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माय / दिलीप कुमार झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरकैत देखने छी माय कें गुड़ जंका
तुमाइत देखने छी तूर जंका
शेष होइते कलौ
ओरिओन में लागि जाइत छलि
रातुक भानसक
किरिन डूब' सन पहिने
पजरि जाइत छल चुल्हि
दिन भरि टकुरी जकां नचैत छलि
तैयो नित्तह पराती गबैत छलि
सभ बेर बेगरता सम्हारैत
नहि कहिओ परिवार के होब देलनि बेथुत
तैयो पिता सभ तामस माए पर उतारैत छलाह
सगरो सांसारक बीख माए पर झारैत छलाह
मुदा देखले दिनमे समय करोट ल' लेलकैया
जन्म प्रमाणपत्रमे आगां मायेक नाम भेलेयै
आबि माय! माय छथि
आ पिता! पिता।