भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मार्ग कैसा भी बीहड़ आये / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मार्ग कैसा भी बीहड़ आये
'छोड़ेगा न मुझे तू' मन से यह विश्वास न जाये

जब निज गति पर भी हो संशय
फिर-फिर हो खो जाने का भय
देखूँ तब तुझको, करुनामय !
दोनों हाथ उठाये

ज्यों शिशु दूर कहीं भी खेले
माँ सुन रुदन गोद में ले ले
वैसे ही तू मुझे अकेले जग में
पल न भुलाये

जब इस पथ से नाता टूटे
जो तिल-तिल जोड़ा सब छूटे
तब भी मन की शांति न लूटे
काल न मुझे डराये

मार्ग कैसा भी बीहड़ आये
'छोड़ेगा न मुझे तू' मन से यह विश्वास न जाये