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मार चाहे दुत्कार ज्यान तेरे चरणां कै म्हां गेरी / मेहर सिंह

वार्ता- सोमवती अपनी सफाई में क्या कहती है-

इतनी कच्ची बात कही क्यूंकर दी तन की ढेरी
मार चाहे दुत्कार ज्यान तेरे चरणां कै म्हां गेरी।टेक

पति रूप पण्मेसर हो तेरा निस दिन ध्यान धरूं थी
करम की मंजिल धरम की राही हरदम ज्ञान करूं थी
सुबह उठकै सबतैं पहला अन्न का दान करूं थी
साधु सन्त गऊ की सेवा बे उनमान करूं थी
स्नान करूं थी होणी नै मै आण महल में घेरी।

तेरे गये पै तीळ टूम कदे घाली ना इस तन मैं
तेरे आवण की आस रहै थी सुरती हरि भजन मैं
पतिव्रता धर्म तै नहीं हटी मैं एक घड़ी पल छन मैं
उस सीता की ज्यूं साची सूं चाहे धर कै देख अग्न मैं
लूट लई धोळे दिन में पिया करकै रात अन्धेरी।

तेरी बुआ बण कै दूती आई पिया बात बता द्यूं सारी
कौळी भरकै न्यूं बोली बहु लागै सै घणी प्यारी
चलती बरियां सिर हाथ धर्या ला छाती कै पुचकारी
तेरी निशानी लेगी बैरण पटका और कटारी
तेरी शर्म की मारी ना नाटी कदे सीश तार ले केहरी।

कहै मेहरसिंह तेरी धजा शिखर में गेरूं तै गिर ज्यागी
धरम की नैया बली ज्ञान की पहले पार उतर ज्यागी
हळवे हळवे बोल पिया ना सारै बात बिखर ज्यागी
पैनी तेग तै मारै मत मेरी आपै गर्दन चिर ज्यागी
गळै कटारी धर ज्यांगी जै खोट खता हो मेरी।