मालिक मैं भौंतुवा हूं, आता हूं / विष्णुचन्द्र शर्मा
-कौन है साले बोल?
-भौंर का भौंतुवा हूँ!!
-जल में क्या जहरीली गैस बना रहा है? खतरनाक
मुद्दों पर बम दबा रहा था? बोल, जब देश के नेता
सागर में लाशों का मुआयना कर रहे थे, तू क्या षड्यंत्र रच रहा था?
चोर लपलप जीभ अंदर कर।
बहुत बक बक करेगा: गाँड में गाँजा भर दूँगा।
बहुत नकनकाएगा: पेट में विलायती या चीनी पिस्तौल दबा दूँगा!
बहुत जोर मारेगा: जबड़ों में सोना मढ़ दूँगा!
बहुत बड़ा नेता बन जाएगा: जल दस्युओं की आजाद बस्ती का!
बोल मुझे शाम तक संसद में असली रपट देनी है! बड़ा
सनसनीखेज़ सौदा है: भौसंडा। साले का नाम ही गाली है।
जल्दी बोल: मंत्री के पीछे किसके बहकाने में लगा था?
मंत्री जब आम बैठक में आँकड़े परोस रहा था-
तू क्या अमरीका-रूस के प्रेतों-सा हिसाब लगा रहा था
जनमत के आँकड़ों का?
बोल जरा काम का कोई तो सुराग बता!
मेरा ओहदा साले, तेरी ही बयान पर टंगा है आग के ऊपर!
-मालिक मैं जल का ही जानवर हूँ। जल में जब
लहरें जोर मारती हैं, दबी हुई भावना जब
फैसला करने को भीतर तक मथती है सीने को,
मैं भौंतुवा भँवर में डूबता नहीं हूँ।
सतह पर रहकर सब
चेहरों का डर या
संकट का कहर देखा करता हूँ।
मालिक मैं मंत्री की जात को कैसे जान सकता हूँ!
मंत्री तो आते ही लाशों का आँकड़ा परोसते हैं।
बहसबाज़ मुद्दों का पेट आँकड़ों से भरते हैं!
मैं भला कागज़ के टुकड़ों से कहाँ तक पेट भर सकता हूँ?
संसद में मालिक रोज ही सिला कर सरोरूह जमाते हैं!
मेरे जबड़े में आप सोना मढ़कर मालिक।
सौदा नये ठिकाने पर बेचेंगे?
-भौंसडा या भौंतुवा तेरा नाम-करतब मैं थाने में करूँगा ठीक।
दस साल अंधी कोठरी में पड़ा-पड़ा रोएगा!
पत्थर पर कमल उगाने का खेल तभी याद आएगा!
बोल बड़े सा’ब के बूट की ठोकर के पहले
असली बात उगल दे!
-मालिक मैं भँवर को छोड़कर दूसरे
किसी को नहीं जानता हूँ!
भँवर तो जल का है विप्लव। मैं अगर झूठ कहूँ
मेरी जीभ गल जाए।
-भँवर में दाईं ओर जाता है या बाईं ओर!
काली, लाल, उजली टोपी आपस में बदलता है या
महज खेतों में, मिलों में घेरा डालता है!
रूस के कितने दौरे किए हैं?
कितनी बार अमरीकी अड्डों पर नंगी मेमों के साथ सोया है?
कितने जहरी बम मिजोरम, सिक्किम, नागालैंड
या मेघालय में फोड़े हैं।
कितने खतरनाकों को कानपुर, फरीदाबाद या हैदराबाद में छिपाया है?
सच-सच बोलेगा मध्यावधि चुनाव में
कोशिश या पैरवी के बाद एम.पी. बना दूँगा।
सच-सच बोलेगा मंत्री के कोटे पर विदेश भेज दूँगा।
भौंतुवा! सच है भँवर में सारा देश नीचे धँसा जाता है।
मैं क्या कर सकता हूँ।
पंतनगर में गोली बड़े सा’ब के हाथ से चली थी।
सा’ब एक गाँठ हैं हम सब उनके फेरे हैं।
एक गाँठ कई फेरे लेकर सरकार बन जाती है।
-मालिक मैं भुज उठा कर यही बात बार-बार कहूँगा:
भौंतुवा को विप्लव की कोई खबर नहीं है।
फरीदाबाद में मेरा बेटा मरा या कच्ची शराब के चक्कर में!
कानपुर में मेरी बेटी का सीना गल गया था क्षय के कीटाणुओं से!
भिलाई में मेरा नाती मंत्री की खान में धँस गया था!
सिक्किम में सफेद टोपी पहने मेरी बहू
पहली बार निकली थी घर से।
राजा के नमक खाए लठैतों ने पेड़ से बाँधकर उसे जला दिया था!
नागालैंड में मेरे कुनबे को सेना की छावनी में कई बार पीटा है।
चीनी रास्ते के मिजोरम में मेरी साली को दिन में
सूली पर चढ़ाया था।
मालिक मैं भौतुवा हूँ: पिछले तीस सालों से जल में हूँ।
भँवर में कभी-कभी ऊपर आ जाता हूँ।
मालिक मुझे विप्लव की कोई खबर नहीं है।
-साले जबड़ा तेरा पूरा हिंदुस्तान है!
जबान से सारंगी बजाता है!
बात से सागर को थहाता है?
ठहर तेरे नातेदारों की खाल खींचकर सरकार
खंजड़ी बजाएगी। बोल दे...
भौंतुवा जल का एक साँप खींच लाया।
-यह मेरी ज़बान है सरकार। निरविष है डरे नहीं!
काटकर इसकी भुजिया परोस दें संसद में।
लाशों के आँकड़ें के साथ भाजी, बड़ा मजा देगी!
सरकार के साथ दावत में थोड़ी शराब भी मिलेगी!
मज़ा आ जाएगा सरकार!
मंत्री तो कल फिर संसद में दया के पुतले या
अलायक दही के भल्ले बन जायेंगे!
अपनी सेहत क्यों बिगाड़ते हैं?
भौंतुवा भँवर में खींचकर सिपाही को देखता रहा।
भँवर ने सर से पैर तक लील लिया
वर्दीधारी सरकार को!
-जानवर तंत्र से