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मालिन से / रामावतार यादव 'शक्र'
Kavita Kosh से
चयन अभी मत करना मालिन,
खिली नहीं कलिका नादान।
पंखड़ियों में बन्दी अब तक
उसके जीवन के अरमान।
मधुपों की आशा-अभिलाषा,
मलय पवन की सुरभित साँस।
मधुऋतु के मादक यौवन की
वही एक विस्मृति अनजान।
विटपी का आकर्षण उससे,
टहनी का वह है शृंगार।
उपवन की शोभा-सुषमा का
देवि, वही केवल आधार।
तोड़ इसे डाली से, अभी न
प्रलय काल तुम बुलवाओ।
सोचो तो, जगत में कितना
मच जाएगा हाहाकार।
-मई, 1922