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माली के प्रति / सियाराम शरण गुप्त
Kavita Kosh से
माली! देखो तो तुमने यह
कैसा वृक्ष लगाया है!
कितना समय हो गया, इसमें
नहीं फूल भी आया है!
निकल गये कितने वसंत हैं,
बरसातें भी बीत गईं;
किंतु प्रफुल्लित इसे किसी नें
अब तक नहीं बनाया है!
साथ छोड़ती जाती है सब
शाखा आदि रुखाई से।
शुष्क हुए पत्तों को इसनें
इधर-उधर छितराया है।
अतुल तुम्हारे इस उपवन की
इससे भी कुछ शोभा है?
क्या निज कौशल दिखलाने को
इसे यहाँ उपजाया है।
अरे, काट ही डालो इसको
अथवा हरा भरा कर दो,
कहें सभी आहा! तुमने वह
कैसा वृक्ष लगाया है!