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मालूम नहीं इच्छा होती है जब / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
मालूम नहीं
इच्छा होती है जब
कि आए वह
क्या वह रूठ गई होती है
खेत-हार में सूख रहे
पूसों के बीच
दिन-दहाड़े
छब्बीस मार्च के दिन
जब कोई शक नहीं कि दहक रहे हैं तीन-तीन पेड़ों के फूल
हलके स्पर्श में चित्र-सरीखी बैठी हुई बकरियाँ
हलके बुखार में तप रही हैं
स्मृति
जब सिर्फ़ और सिर्फ़ एक आगोश है
दिशाओं में लरज़ती हुई