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मालूम नहीं (1) / जगदीश रावतानी आनंदम

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आई पी एस अफसर अकेला नहीं कुचला गया
कुचले गए मां बाप के संजोय स्वप्न
पत्नी और बच्चे का भविष्य
तथाकथित प्रजातंत्र
बहादुर की आवाज़
और साथ ही कुचला गया
आम नागरिक का विश्वास
सरकारी तंत्र का चरित्र
और शायद कुचली गयी भगवान् में आस्था
क्या बच पाएगी कुचलने से लेखक की कलम
मालूम नहीं