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मालू राजुला / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हैको गास छोड़े विरालीक<ref>बिल्ली</ref> तई।
तीसरो गास छोड़े अगनी का नऊ।
चौथो गास वो अफू भोरजन कर्द।
छोड़ याले तब साई न माता को थाल,
मालूशाही की माता झप<ref>एकदम</ref> अंगवाल<ref>आलिंगन</ref> मारदे।
तू जोगी नी छई तू छई बेटा मेरो।
किलै<ref>क्यों</ref> छोड़ी बेटा, सात राणी बौराणी?
किलै छोड़ी राजा अपणी रैत<ref>घर-बार</ref> मैत?
नि छऊ माई मैं तेरो मालूशाही,
न मेरी राणी छई न मेरो राज।
मालूशाही माता दणमण<ref>टप-टप, लगातार आँसू बहना</ref> रोन्दे:
तू बोल न बोल बेटा, तू मेरो मालू छई।
कनो<ref>क्यों</ref> निरमोही होई तु
कै<ref>किस</ref> पापीन भरमाई<ref>भरमाया</ref>।
कंचन काया छै तेरी उजली आतमा,
केक बेटा त्वैन यो राखो रमाई?
मैं नी छऊँ मेरी माता, तेरो जायो<ref>बेटा</ref>,
मैं छऊं माता गुरू गोरख को चेलो।
तब गाडे जोगीन बोकसाड़ी<ref>यक्षिणी</ref> विद्या,
वैई<ref>उसी</ref> बगत<ref>वक्त</ref> मा वो अन्तर्ध्यान ह्वैगे
छोड़ तब्री रंगीली वैराट,
चली गए वो जलन्धर देस मा-
जलन्धर देस मा विषल्या का शैर<ref>शहर</ref>।
वै शैर मा रन्दी छई वा राणी विषल्या,
जै राणी की छई विष की मगरी<ref>बावली</ref>,

ऊ मगरियों मा विष चारियूं छयो,
जु तें पाणी पेंद छौं, विष खै मरी जांद छयो,
मालशाही जोगी पौंछीगे दोफरी का धाम,
विष की मगरी पाणी पीयाले।
जोगी तई तब विष लगो गए-
ढली गये वो चन्दन-सी गेंडो<ref>गेला, लकड़ी</ref>।
राणी विसल्या तब पाणी भरण ऐगे,
देखे वैन जोगी पड्यूं-
हात हात भर की जटा बेत<ref>बालिश्त</ref> बेत भर का नंग<ref>नाखून</ref>,
पर मुखड़ी पर वैकी बाला<ref>बाल</ref> सुरज की उद्यों<ref>किरण, चमक</ref> छौं
वीं स्वाणी<ref>सुन्दर</ref> सूरत भोली मूरत देखी,
वीं दया ऐगे।
लक<ref>जादू</ref> लगाये वींन, विष गाडीयाले,
जीतो<ref>जिन्दा</ref> होई गए मरयूं मालूशाही
तनी<ref>वैसे</ref> जीती<ref>जागृत</ref> रयान सुणली<ref>सुनने वालों</ref> सभाई।
तब बोलदी विषल्या रौतेली-
तुम मेरा नाथ साई, मैं तुम्हारी जोगीणा।
विसल्या मैं जाग जलन्धर देस,
जब घर औलू त्व विवै ल्यौलू।
रंगीली को राजा छऊँ, मैं रंगीली मालूशाही।
तिन मेरा पराण बचाया,
त्वै मैं विषल्या, भुलण्या नी विसरण्या।
हे जी, तब जांदू मालूशाही जलन्धर देस मा,
विघनी विजैपाल छा घट<ref>धराट, चक्की</ref> मू,
तब मिली गैन विधनी विजैपाल।
चार गारा मन्त्रीन साई न,
देखा दूं तब तौंका घटा बन्द होई गैन,
तब औंदन जोगी मू कये बिघनी विजैपाल,
हे भायों, केव घट बन्द होइन?
हे भाई, तू छई मातमी<ref>पहुँचा हुआ</ref> जोगी,
हमारा घट बन्ध्या गैन।
तु कुछ तन्त्र जाणनी त
हमारो कारज साधी ले।
अहा, ई किसम को साधू हम नी मिलणो?
तब बोलदो जोगी-हे विघनी विजैपाल,
राजुला न व्यायान, तुमन मारीइ जाण।
जोगी पौंछीगे तब राजुला का पास,
राजुलीन देखे रूपवन्तो साई,
कनू देखेन्द यो मालूशाही की तरौं।
मालूशाही बोल्द-राजुला रौतेली,
तेरा नौं को जोगी छौ, तेरा रूप को भोगी।
भौ<ref>चाहे</ref> कुछ होइ जान, मैन तू बेवैक ल्याणी।
तेरा बाना<ref>कारण</ref> छोड़ी राजुला रंगीली बैराट,
तेरा बाना छोड़ी राजुला, राण्यों का भौन।
तेरा बाना छोड़ें राजुला, माता की माया,
तेरा बाना धरे जोगी को ध्यान।
आई गैन तबारे विघनी विजैपाल,
राजुला हमारी होली, तू जोगी कखन<ref>कहाँ से</ref> आयो?
विघनी विजैपाल छा बांका भड़,
ऊँ देखी पड़<ref>पहाड़</ref> कम्पदा छा, डाल्यों<ref>पेड़</ref> का जड़ला<ref>जड़</ref>।
ऊँन तब जुद्ध शुरू करीयाले।
मालूशाही होलो बोक्सा<ref>यक्ष</ref> को चेला,
कनी खोली वैन बगसाड़ी<ref>यक्षिणी</ref> विद्या-
इना भैरव तब पैदा ह्वैन
जौन विघनी विजैपालू का कलेजा
कोरी-कोरी खैन।
एक नी ऊँन छोड़ीन विघनी विजैपाल,
गाबा<ref>कन्दमूल</ref> सी काटीक, निमो<ref>नींबू</ref> मी निचोड़ीन<ref>निचोड़े</ref>।
तब प्रफूल ह्वैगे राजुला राणी,
तुम होला स्वामी मेरा पूर्वला<ref>पूर्वजन्म</ref> का सांगाती<ref>साथी</ref>,
मैं तुमारी छऊँ, तुम मेरा छतर<ref>सिर के छत्र</ref>।
तब सिंगार करदी राजुला रंगीली,
आँख्यों गाजल<ref>काजल</ref> चढौंदी, माथा वेंदी
भली गाड़दी<ref>निकालती</ref> स्यू<ref>माँग</ref> द पाटी, फूलून सजैक।
तब सजीगे वींको औला<ref>आँवला</ref> सरी<ref>तरह</ref> डोला,
नौरंग मालूशाही छौ दस रँगी राजुला।
रंगीलो मालूशाही औंद रंगीली वैराट,
रंगीली वैराट मा जै जै होंद!

शब्दार्थ
<references/>