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माल खाऒ / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
चुहिया रानी रोज बनाती,
लौकी की तरकारी|
कहती है इसके खाने से,
दूर हटे बीमारी|
पर चूहे को बीमारों का,
भोजन नहीं सुहाता|
कुतर कुतर कर आलू गोभी,
बड़े प्रेम से खाता|
उल्टी सीधी सीख जमाने,
की ना उसको भाती|
झूठ कभी ना बोला करता,
सच्ची बात सुहाती|
बजा बजा डुगडुगी रोज वह,
लोगों को बुलवाता|
बड़े प्रेम से यही बात फिर,
सबको ही समझाता|
बढिया भोजन करने से ही,
हटती हर लाचारी|
माल खाओ और मस्त रहो,
कहती दुनिया दारी|